बारिश में भीगते हैं कच्चे घर, सुविधाएं नदारद
अंजोरा गांव की सुनैना, लता ठाकुर, कुमारी कौशिक और पांचो साहू जैसी महिलाएं बताती हैं कि हर साल बारिश में उनके कच्चे घरों में पानी भर जाता है। सूची में नाम आने के बाद भी ना राशि मिली, ना मकान बना। ग्रामीण सरपंच से लेकर सरकारी अधिकारियों तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन नतीजा शून्य रहा।
आंकड़ों की हकीकत
सरकारी आंकड़ों के अनुसार:
- छत्तीसगढ़ में कुल पात्र परिवार: 26,95,580
- 2016-2023 तक लाभ का लक्ष्य: 11,76,142
- बने हुए मकान (2016-2023): 11,11,246
- 2024-25 में लक्ष्य: 11,50,315
- स्वीकृत आवेदन (2024-25): 9,52,327
- पूर्ण किए गए आवास: 2,16,276
- 2025-26 लक्ष्य: 3 लाख परिवारों को लाभ देना
इन आंकड़ों के बावजूद दुर्ग जैसे जिलों में जमीनी हकीकत अलग है, जहां हज़ारों परिवार आज भी पक्के मकान के सपने देख रहे हैं।
राजनीतिक तकरार, लेकिन समाधान नहीं
छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर राजनीतिक बयानबाज़ी तेज़ हो गई है।
सत्ताधारी भाजपा का कहना है कि उन्होंने लाखों गरीबों को मकान उपलब्ध कराया है, जबकि विपक्ष इसे "कागज़ी दावा" बता रहा है।
अंजोरा गांव की स्थिति यह दिखा रही है कि नीतियों का लाभ ज़मीन तक नहीं पहुंच पा रहा है।
जनता की आवाज़
“नाम आ गया लेकिन घर नहीं मिला। हम आज भी फूस के घर में रह रहे हैं।”
— सुनैना, अंजोरा गांव निवासी
“बारिश में घर के अंदर पानी भर जाता है, लेकिन अधिकारी कुछ सुनते ही नहीं।”
— लता ठाकुर, अंजोरा गांव
प्रधानमंत्री आवास योजना देश के गरीबों को सम्मानजनक जीवन देने का एक प्रयास है, लेकिन जब लाभार्थी सालों तक इंतजार करें और फिर भी कुछ न मिले, तो यह योजना सवालों के घेरे में आ जाती है।
अब देखना होगा कि अंजोरा जैसे गांवों की आवाज़ कब तक सरकारों के कानों तक पहुंचेगी।
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